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About Author : निराला के बाद नागार्जुन (जन्म:1911.निधन: 1998) अकेले ऐसे कवि हैं, जिन्होंने इतने छंद, इतने ढंग, इतनी शैलियाँ और इतने काव्य रूपों का इस्तेमाल किया है पारंपरिक काव्य रूपों को नए कथ्य के साथ इस्तेमाल करने और नए काव्य कौशलों को संभव करनेवाले वे अद्वितीय कवि हैं। उनके कुछ काव्य शिल्पों में ताक झाँक करना हमारे लिए मूल्यवान हो सकता है उनकी अभिव्यक्ति का ढंग तिर्यक भी है, बेहद ठेठ और सीधा भी। अपनी तिर्यकता में वे जितने बेजोड़ हैं. अपनी वाग्मिता में वे उतने ही विलक्षण हैं काव्य रूपों को इस्तेमाल करने में उनमें किसी प्रकार की कोई अंतर्बाधा नहीं है। उनकी कविता में एक प्रमुख शैली स्वगत में मुक्त बातचीत की शैली है। नागार्जुन की ही कविता से पद उधार लें तो कह सकते हैं- स्वगत शोक में बीज निहित है विश्व व्यथा के। उनकी कविता एक ऐसी बातचीत है. जो दूसरों को संबोधित है, जो अंतर-बाह्य की अटूट संधि से बनी है। उसमें विश्व व्यथा के बीज भी हैं और स्वगत शोक भी। इस तरह की शैली ज्यादातर आख्यानात्मक और गद्य कविताओं में अधिक सामर्थ्य के साथ प्रकट होती है। उनकी गद्य लय का उठान काव्य लय के स्तर तक जाता है और कई बार उनकी काव्य लय ठेठ गद्य की लय को छूने लगती है। इसमें उनकी विवरण कला और बातूनीपन का विलक्षण युग्म देखा जा सकता है। विशेष रूप से उत्तर भारत और पूर्वांचल के लोगों का बातूनीपन, गप्प मारने, हँसने-हँसाने, ठिठोली करने, बीच-बीच में चिकोटी काटने, यहाँ तक की शरारत और आब्सिनिटी का भी बेहद । सतर्क उपयोग उनकी कविता में है। इस शैली के लचीलेपन का उपयोग करते हुए नागार्जुन कई तरह की स्वतंत्रता लेते हैं वे कई बार एक से अधिक काव्य रूपों या छंदों का इस्तेमाल एक ही कविता में कर लेते हैं। इस तरह का मिश्रण नाटकीयता को तो पैदा करता ही है साथ ही हमारी सामाजिक संरचना की ओर भी इंगित करता है। इस शैली में घुमक्कड़ी की मुक्तता भी है और गति भी।
ISBN : 81-260-1907-7
Book format : Paper back